नज़्म
अपना सूरज
अपने सूरज में गर समाना है,
और कुछ कर के ही दिखाना है,
अपनी हस्ती को बर्क़१ पर रख के,
तर्क-लज़्ज़त२ का ज़ायका चख के,
अपने माहौल को सुलाते हुए,
अपने मीरास३ को भुलाते हुए,
अपने साए को नान्घ कर बढ़ जा,
मरहले४ डाक, मंज़िलें चढ़ जा।
ख़ुद को पहचान एक साज़ है तू ,
आपो दीपो भवः का राज़ है तू ।
तू जहाँ है वहां पे कोहरा है,
मुन्तज़िर5 तेरा हुस्ने ज़ोहरा६ है।
१-बिजली २-स्वाद त्याग ३-धरोहर ४-पडाव ५-एक सितारा
اپنا سورج
اپنے سورج میں گر سمانا ہے
اور دنیا میں جگمگانا ہے
اپنی ہستی کو برق پر رکھ کر
ترک لذّت کا ذائقہ چکھ کر
اپنے ماحول کو بھلاتے ہوئے
اپنی میراث کو سلاتے ہوئے
اپنے ساۓ کو نانگھ کر بڑھ جا
مرحلے ڈانک ، منزلہ چڑھ جا
خود کو پہچان ایک ساز ہے تو
" آپو دیپو بھوہ" کا راز ہے تو
تو جہاں ہے ، وہاں پہ کہرا ہے
منتظر تیرا حسن زوہرہ ہے ٠
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