Friday, April 8, 2016

JUNBISHEN 774


ग़ज़ल

हर शब की क़ब्रगाह से, उठ कर जिया करो,
दिन भर की ज़िन्दगी में, नई मय पिया करो।

उस भटकी आत्मा से, चलो कुछ पता करो,
इस बार आइना में बसे, इल्तेजा करो।

दिल पर बने हैं बोझ, दो मेहमान लड़े हुए,
लालच के संग क़ेनाअत1, इक को दफ़ा करो।

तुम को नजात देदें, शबो-रोज़ के ये दुःख,
ख़ुद से ज़रा सा दूर, जो फ़ाज़िल गिज़ा करो।

दरवाज़ा खटखटाओ, है गर्क़े-मुराक़्बा2,
आई नई सदी है, ज़रा इत्तेला करो।

'मुंकिर' को क़त्ल कर दो, है फ़रमाने-किब्रिया3 ,
आओ कि हक़ शिनास को, मिल कर ज़िबा करो।

१-संतोष २-तपस्या रत ३-ईश्वरीय आगयान


غزل

ہر شب کی قبر گاہ سے، اٹھ کر جیا کرو 
دن بھر کی زندگی میں، نی مے پیا کرو٠ 

اس بھٹکی آتما سے چلو کچھ پتہ کریں
اس بار آئینہ میں بسے، التجھ کرو ٠ 

دل پر بنے ہیں بوجھ ، دو مہماں لڑے ہوے، 
لالچ بھی ہے ، نجات بھی ، اک کو جدا کرو ٠ 

تم کو نجات دینگے ، شب و روز کے یہ دکھ 
خود سے ذرہ سا دور، جو فاضل غذا کرو ٠ 

دروازہ کھٹ کھٹا ؤ ، ہے غرق مراقبہ 
ائی نی صدی ہے ، اسے اطلا ع کرو٠ 

منکر کو قتل کر دو، ہے فرمان کبریا 
 کہ حق شناش کو، مل کر ذبح کرو
 ٠ 

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