Monday, November 18, 2013

Junbishen 104

Qataat

अजीब बन्दा 

सर झुकाए हुए ही चलता है ,
कुछ इबारत ज़मीं की पढता है ,
उस से भिड़ना बड़ा ही मुश्किल है ,
सारे इलज़ाम खुद पे मढ़ता है . 


डिजाइन 

मायूस हुवा मुंकिर तब उनको हँसी आई ,
मह्जूज़ हुवा मुंकिर तब उनको हँसी आई ,
टाइम का डिज़ाइन है पल भर के तवक़्क़ुफ़ में ,
मारूफ हुवा मुंकिर तब उनको हँसी आई .


ठूंठ 

बातिल की बाग़ में हूँ किसी ठूंठ की तरह ,
हर सांस पी रहा हूँ कड़े घूँट की तरह ,
लादे हुए हूँ पीठ पर, सच्चाइयों का बोझ ,
वीरान दश्त में हूँ , किसी ऊँट की तरह .

1 comment:

  1. लफ्ज़ों के बलंदे-बुरुज को बुज़ुर्गियत चाहिए..,
    इल्मों-ईमान और जऱा सी तबीयत चाहिए.....

    बुरुजे-बुर्द = ऊंची मनार
    बुजुर्गियत = अनुभव

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