Friday, March 14, 2014

Junbishen 159

रूबाइयाँ 


हर सम्त सुनो बस कि सियासत के बोल, 
फुटते ही नहीं मुंह से सदाक़त के बोल , 
मजलूम ने पकड़ी रहे दहशत गर्दी, 
गर सुन जो सको सुन लो हकीकत के बोल. 


शैतान मुबल्लिग़! अरे सबको बहका, 
जन्नत तू सजा, फिर आके दोज़ख दहका, 
फितरत की इनायत है भले 'मुंकिर' पर, 
इस फूल से कहता है कि नफरत महका. 


पसमांदा अक़वाम पे, क़ुरबान हूँ मै, 
मुस्लिम के लिए खासा परीशान हूँ मैं, 
पच्चीस हैं सौ में, इन्हें बेदार करो, 
सब से बड़ा हमदरदे-मुसलमान हूँ मैं. 

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