मन को लूटे धर्म की दुन्या , धन को लूटे नेता,
देश को लूटे नौकर शाही, गुंडा इज्ज़त लेता।
आटोमेटिक प्रोडक्शन है, श्रम को कोई न टेता,
तन लूटे सरमायादारी,जतन को घूस का खेता।
चैन की सांस प्रदूषण लूटे, गति लूटे अतिक्रमण,
उन्नत भक्षी जन संख्या ने अपना गला ही रेता।
प्रतिभा देश से करे पलायन सिस्टम को गरियाती,
आरक्षन का कोटा सब को दूध भात है देता।
प्रदेशिकता देश को बाटे, कौम को जाति बिरादर,
भारत माता भाग्य को रोए, कोई नहीं सुचेता।
सब के मन का चोर है शंकित, मुंह देखी बातें हैं,
"मुंकिर" शब्द का लहंगा चौडा, मन का घेर सकेता।
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ग़ज़ल - - - वोह जब करीब आए
बहुत अच्छा लिखा आप ने......
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