Saturday, September 10, 2011

ग़ज़ल - - - बडी कोताहियाँ जी लीं, बड़ी आसानियाँ जी लीं

बडी कोताहियाँ जी लीं, बड़ी आसानियाँ जी लीं,
कि अब जीना है फितरत को बहुत नादानियाँ जी लीं.


तलाशे हक में रह कर अपनी हस्ती में न कुछ पाया,
कि आ अब अंजुमन आरा! बहुत तन्हाईयाँ जी लीं.


जवानी ख्वाब में बीती, ज़ईफी सर पे आ बैठी,
हकीक़त कुछ नहीं यारो की बस परछाइयाँ जी लीं.


मेरी हर साँस मेरे हाफ्ज़े से मुन्क़ते कर दो,
कि बस उतनी ही रहने दो कि जो रानाइयाँ जी लीं.


जो घर में प्यार के काबिल नहीं, तो दर गुज़र घर है,
बहुत ही सर कशी झेलीं, बहुत ही खामियाँ जी लीं.


तआकुब क्या तजाऊज़ कुछ खताएँ कर रहीं "मुंकिर",
इन्हें रोको की कफ्फारे की हमने सख्तियाँ जी लीं.
*****

*फितरत=प्रक्रिति *हक=खुदा * हाफ्ज़े=स्मरण *मुन्क़ते=विच्छिन *तआकुब=पीछा करना *तजाऊज़=उल्लंघन *कफ्फारे=प्राश्यचित

5 comments:

  1. Waah...Waah...Waah..Kya lajawab sher kahen hain aapne...Daad kabool karen.

    Neeraj

    ReplyDelete
  2. बेहद खूबसूरत गज़ल ,आभार ..

    ReplyDelete
  3. जो घर में प्यार के काबिल नहीं, तो दर गुज़र घर है,
    बहुत ही सर कशी झेलीं, बहुत ही खामियाँ जी लीं.
    वाह !!! क्या लाजवाब गज़ल है.

    ReplyDelete
  4. आप सब का शुक्रिया

    ReplyDelete